जिस सोच को हम जितना व्यवस्थित और सुनियोजित मानकर चल रहे थे, दरअसल, उसकी सारी बुनियाद ही गलत नजर आने लगती है। फिर बार-बार यही अफसोस और पछतावा होता है काश यह बात हमें बहुत पहले समझ में आ जाती।
ऐसी ही मुश्किल घड़ी से गुजर रहे हैं आसिफ (नाम बदला हुआ) जो बीसीए के छात्र हैं और एमसीए की तैयारी कर रहे हैं। वह अपनी पाँच वर्ष पुरानी दोस्त स्वाति के जीवन में आए नए रिश्ते के कारण बेहद विचलित हो गए हैं। वह अपनी पढ़ाई भी ठीक ढंग से नहीं कर पा रहे हैं। उनकी मुश्किल यह है कि वह अपनी यह मनोदशा अपनी दोस्त के सामने बयान नहीं कर सकते क्योंकि आसिफ को लगता है यदि दोस्त ने नाराज होकर दोस्ती तोड़ ली तो वह और भी मानसिक उलझन में पड़ जाएँगे।
यह प्रेम की भावना आपका डर है। प्रेम होता तो आप बहुत पहले महसूस करते और अपना प्रस्ताव रख चुके होते। आपको खुश होना चाहिए कि आपकी दोस्त को उसकी पसंद का साथी मिला है। नए रिश्ते से आहत व विचलित होने के बजाय आप तीनों अच्छे दोस्त बन जाएँ।
आसिफ जी, इतने वर्षों तक जब स्वाति केवल आपकी दोस्त थी और आपके मन में कभी प्रेम प्रस्ताव की भावना नहीं आई तो अब क्यों आप इतने विचलित हो रहे हैं। आपने शायद इसीलिए ऐसा किया होगा कि आप उन्हें मात्र मित्र के रूप में ही देखते होंगे। जब किसी अन्य व्यक्ति ने उसके सामने प्रेम का प्रस्ताव रखा तो उसे ठीक लगने पर उसने स्वीकार कर लिया। एक बात बताएँ कोई लड़की जिसे आप पसंद करते और वह आपके सामने प्रेम प्रस्ताव रखती तो आप क्या करते? क्या आप यह सोचते हैं कि जीवन भर आप और स्वाति दोस्त बने रहते और आप लोगों के जीवन में किसी को भी नहीं आना चाहिए। पूरी जिंदगी मित्रता के नाम। ऐसा भी संभव है, पर ऐसा कोई समझौता भी नहीं था आपके बीच। फिर यह हाय तौबा क्यों?दरअसल, हर क्षेत्र में हम एकाधिकार रखने के लिए तड़पते रहते हैं। संयोगवश जब तक कोई उसमें घुसपैठ नहीं करता है, वह हमारी आदत बन जाती है और किसी भी आदत को छोड़ना कभी भी आसान नहीं होता। सारे तर्क धरे रह जाते हैं। अब तक स्वाति का समय आपके लिए था और आपका सुख-दुख स्वाति तक महफूज था पर अब आप अपनी दोस्त को लेकर निश्चित नहीं हैं ।
दोस्ती से बहुत ज्यादा निजीपन और नजदीकी लिए होता है प्रेम का रिश्ता। उन दोनों के एक हो जाने से आप खौफजदा हो गए हैं। अब आपको लगता है आप दोयम स्थान पर खड़े हैं। आप पछताते रहते हैं कि आपने पहले अपनी भावना को क्यों नहीं समझा। आपको अफसोस हो रहा है कि आज जो प्रेम आप अपनी दोस्त के लिए महसूस कर रहे हैं, क्यों नहीं इसका इजहार आपने पहले किया।
कई बार ऐसा होता है कि हम बाजार से बहुत ही खूबसूरत रंग का एक लिबास खरीद कर लाते हैं। उसे बार-बार देखते हैं और अपनी पसंद पर फख्र करते हैं। यदि किसी ने उसकी तारीफ कर दी तो हम बड़ी शान से बोलते हैं कि बहुत सारे रंगों के बीच से चुना है हमने यह रंग। देखो हमारी पसंद लाजवाब है पर फिर एक दिन हम उसी रंग से मिलता-जुलता एक शेड देखते हैं और वह हमें इतना ज्यादा अच्छा लगता है कि हमारा चुना हुआ रंग बेहद भद्दा लगने लगता है। अफसोस होता है क्यों जल्दबाजी की, थोड़ा और समय लगा लेते तो क्या बिगड़ जाता। ऐसी बातें आए दिन होती रहती हैं और हम भूल जाते हैं क्योंकि इसमें थोड़ा पैसा और समय लगा होता है पर रिश्तों में हमारी ढेर सारी भावनाएँ लगी होती हैं और जब वहाँ विकल्प के कारण कोई हाथ से जा रहा होता है तो हम कराह उठते हैं कि काश वह विकल्प हम ही होते।
आसिफ जी, आपने अब तक अपनी दोस्त को प्रेमिका की नजर से नहीं देखा है तो अचानक उसके सामने कैसे ऐसी भावना का जिक्र करेंगे। इतनी प्यारी और संतुलित सी दोस्ती समाप्त नहीं हो जाएगी बल्कि वह आपका सम्मान करना छोड़ देगी। यह प्रेम की भावना आपका डर है। प्रेम होता तो आप बहुत पहले महसूस करते और प्रस्ताव रख चुके होते। आपको खुश होना चाहिए कि आपकी दोस्त को उसकी पसंद का साथी मिला है। रिश्ते में यदि दिमाग साफ रखा जाए तो तकलीफ कम होती है और व्यवहार करना आसान हो जाता है। नए रिश्ते से आहत व विचलित होने के बजाय आप तीनों अच्छे दोस्त बन जाएँ और अपने लिए एक साथी की तलाश करें।